जैसलमेर किले के 6 रोचक तथ्य जिन्हें आप हमेशा जानना चाहेंगे
रावल जैसल द्वारा 1155 ई. में निर्मित जैसलमेर का यह किला सोनारगढ़ या सोनगढ़ कहलाता है | पूर्णतः पीले पतथरों से निर्मित होने के कारण इसे यह नाम दिया गया है | प्रातः काल और सूर्यास्त के समय सूर्य की लालिमा से यह सोने की तरह चमकता हुआ दिखता है |


जैसलमेर किला दुनिया के सबसे बड़े किलों में गिना जाता है | यह दुर्ग त्रिकुटाकृति का है जिस में 99 बुर्ज हैं | इसे रेगिस्तान की बालू रेत से मिलते जुलते स्थानीय गहरे पीले रंग के पतथरों को बिना छूने की सहायता के आश्चर्यढंग से जोड़कर बनाया गया है |
क्षेत्रफल की दृष्टि सेयह किला 1500×750 वर्ग फ़ीट के घेरे में है और इस की ऊंचाई 250 फ़ीट है | दुर्ग का दोहरा परकोटा कमरकोट कहलाता है | अक्षयपोल किले का मुख्य प्रवेश द्वार है | सूरजपोल, गणेशपोल, और हवापोल भी विशाल द्वार हैं जिसकी वजह से शत्रु आसानी से प्रवेश नहीं कर सकता था |


जैसलमेर किले के अंदर बने भव्य महलों में महारावल अखै सिंह द्वारा बनाया हुआ शीश महल, मूलराज II के बनाये हुए रंग महल और मोती महल शानदार जालियों और झरोखों और पुष्पलताओं के सजीव और सुन्दर अलंकरण के कारण देखने लायक हैं | गज विलास और जवाहर विलास महल पत्थर के बारीक काम और जालियों के लिए प्रसिद्ध हैं |
जैसलमेर के अंदर बने भव्य प्राचीन जैन मंदिर कला के शानदार नमूने हैं | इनमें पाश्र्वनाथ, सम्भवनाथ, और ऋषभदेव मंदिर अपनी सुन्दर और सजीव प्रतिमाओं की वजह से दिलवारा के जैन मंदिर से प्रतिस्पर्धा करते मालूम होते हैं |


जैसलमेर किले की सबसे ख़ास बात यह है की इसमें हस्तलिखित ग्रंथों का दुर्लभ भंडार है, जिसके रूप में ज्ञान की एक अनमोल सम्पदा सुरक्षित है | इनमें अनेक ग्रन्थ ताड़पत्रों पर लिखें हैं और बहुत बड़े आकार के हैं | हस्तलिखित ग्रंथों का सबसे बड़ा संग्रह जैन आचार्य जिनभद्रसूरी के नाम पर ‘ जिनभद्रसूरी ग्रन्थ भंडार’ कहलाता है |