सवाई माधोपुर से लगभग 40 किलोमीटर पूर्व में स्थित खण्डार का किला रणथम्बोर के सहायक दुर्ग व् उसस्के पृष्ठ रक्षक के रूप में विख्यात है | प्रकृति ने खण्डार के किले को अद्भुत सुरक्षा कवच प्रदान किया है | प्रकृति की गोद में बसा यह दुर्ग घने जंगल, पूरे साल बहने वाली नदियों और अथाह तालाबों से घिरा है | खण्डार किला नैसर्गिक खूबसूरती का खज़ाना है, जिसके पूर्व में बनास व् पश्चिम में गालँदी नदियां बहती हैं | वहीँ यह दक्षिण दिशा में नहरों, तालाबों, तथा अनियमित आकार की पर्वत श्रंखलाओं से घिरा हुआ है |
समुद्र तल से लगभग 500 मीटर तथा भूतल से लगभग 200 मीटर ऊँचा, लगभग दो तीन किलोमीटर क्षेत्रफल में फैला यह किला सवाई माधोपुर से लगभग 40 मिलोमीटर पूर्व में स्थित, प्रकृति की सुरम्य वादियों में चौहान राजाओं ने बनाया था यह किला | कब बना और इसके निर्माता कौन था इसकी कोई प्रामाणिक जानकारी नहीं है | रणथम्बोर से इस किले की अत्यधिक निकटता और ज्ञात ऐतिहासिक जानकारी के आधार पर ऐसा विश्वास किया जाता है कि खण्डार किले को चौहान वंश ने ८-९ शताब्दी में बनवाया है | रणथम्बोर के यशस्वी शासक राव हम्मीर देव चौहान के शासनकाल में खण्डार का किला मौजूद था | राव हम्मीर देव के वीरगति पाने के साथ जुलाई १३०१ ई. में रणथम्बोर के साथ खण्डार का किला भी चौहानों के हाथ से निकल गया |


भारतीय वास्तुशास्त्र के परम्परागत आदर्शों पर निर्मित खण्डार का किला सुदृढ़ और भव्य प्रवेश द्वार, विशालकाय बुर्जों और घाघरानुमा परकोटे से जुड़कर एक रूप हो गया है | जिसने इस किले को एक दुर्भेद्य दुर्ग में परिणत कर दिया है | खण्डार दुर्ग की सुरक्षा व्यवस्था इतनी सुदृढ़ थी की इस पर अधिकार करना किसी भी आक्रांता के लिए लोहे की चने चबाने से काम नहीं था | खण्डार का किला कड़ी पहाड़ी पर बना है, जो सीढ़ी और ऊंची है | अपनी आकृति में खण्डार का किला त्रिभुजाकार है | समुद्रतल से यह किला ५०० मीटर तथा भूतल से २६० मीटर ऊंचा है | खण्डार का किला लगभग २-३ किलोमीटर में फैला हुआ है |
खण्डार किले के ऊपर जाने का मार्ग पथरीला और घुमावदार है | किले के अंदर पहुँचने के लिए 3 विशाल और सुदृढ़ दरवाज़ों को पार करना होता है | मुख्य प्रवेश द्वार से आगे चलने पर मार्ग दाहिनी ओर घूम जाता है, जहाँ सैनिक चौकियां और सुरक्षा प्रहरियों के आवास गृह बने हैं | आगे चल कर प्राचीर के पास ही एक प्राचीन जैन मंदिर है, जहाँ महावीर स्वामी की पध्मासन्न मुद्रा में तथा पार्श्वनाथ की आदम कद व् खड़ी प्रतिमा और अन्य जैन प्रतिमाएं बनी हैं | दिवार पर वि.सं १७४१ का लेख उत्कीर्ण है | वहां से आगे एक मंदिर में हनुमान जी की विशाल प्रतिमा एक ही शिला पर उत्कीर्ण है | हनुमान अपने पैरों तले असुरों का दमन करते प्रदर्शित हैं | बुर्ज दरवाज़े से होकर किले के पश्चिमी छोर तक पहुंचा जा सकता है |


खण्डार का किला रणथम्बोर का पृष्ठ रक्षक और सहायक दुर्ग था | इस किले का उपयोग मूलतः सैन्य साज सज्जा, युद्ध अभ्यानों की तैयारी, सैनिक प्रशिक्षण, तथा अन्य सैन्य गतिविधियों के लिए किया जाता था | इसलिए किले के भीतर बने भवनों में बारूद खाना, सिला खाना, तोप खाना आदि भवनों की अधिकता है | यहाँ की बुर्जों पर तोपें रखने के चबूतरे बने हैं, जिन पर लम्बी दूरी तक मार करने वाली तोपें रखी जाती हैं | इनमें अष्ट धातु से निर्मित शारदा तोप अपनी मारक क्षमता के लिए प्रसिद्द थी | किले की भीतर कैदियों को रखने की बुर्ज भी विधमान है | खण्डार के किले की भीतर बने अन्य भवनों में राजप्रासाद, रानी का महल, चतुर्भुज मंदिर, देवी मंदिर, और सतकुंड, लक्ष्मणकुण्ड, बानकुण्ड, झिरीकुण्ड तालाब हैं | देवी मंदिर के पास एक सुरंग के अवशेष विध्य्मान है जो संभवतः शत्रु द्वारा घेर लिए जाने पर विपत्तिकाल में किले से सुरक्षित बहार निकलने का मार्ग था |


खण्डार का किला चैहानों को हराकर अलाउद्दीन खिलजी ने उस पर अपना अधिकार जमा लिया था | कुछ समय के बाद राणा सांगा ने किले को तुग़लक़ वंश से जीत लिया था | राणा सांगा ने रणथम्बोर के साथ खण्डार का किला भी अपनी रानी कर्मवती और उसके युवा पुत्रों युवराज विक्रमादित्य और उदय सिंह को दे दिया था | यह किला कुछ वर्षों तक गुजरात के बहादुर शाह ज़फर और शेर शाह सूरी के अधिकार में रहा | इसके बाद मुग़ल बादशाह अकबर ने बूंदी के राव सुरजन हाडा से इसको जीत लिया | मुग़ल साम्राज्य के पराभव में आमेर (जयपुर) के शासकों ने खण्डार के किले को फिर से अपने अधिकार में ले लिया |
जयपुर के महाराजा सवाई माधव सिंह प्रथम ने पचेवर के अनूप सिंह खंगारोत को किलेदार बना दिया | अनूप सिंह ने मरहठा सेनापति जनकूजी सिंधिया को हरा कर रणथम्बोर का किला जयपुर रियासत में शामिल कर लिया | रणथम्बोर जैसे विशाल और अभेद्य किले पर अधिकार करना खण्डार के chote से किले के किलेदार अनूप सिंह के लिए बहुत बड़ी जीत और उपलब्धि थी | इस से खुश होकर महाराजा माधव सिंह ने अनूप सिंह को खण्डार के साथ रणथम्बोर का भी दुर्गाध्यक्ष बना दिया |
तो यह था खण्डार के किले का गौरवशाली इतिहास | अगर आपको किसी और किले का इतिहास जानना है तो कमेंट में उस किले का नाम ज़रूर लिखें |