जानिए कैसे हुआ महाशिवरात्रि का आगाज, भोले भंडारी की कृपा पाने के लिए शिवभक्तों को होना चाहिए इन बातों का ज्ञान
हिंदू धर्म में महाशिवरात्रि का अपना एक विशेष महत्व है। इसे फाल्गुन कृष्ण चतुर्दशी को हर्षोल्लास के साथ मनाया जाता है। पुराणों के मुताबिक जब देवताओं और असुरों के बीच समुद्रमंथन हुआ था तो उस वक्त समुद्र से कालकूट नामक जहरीला विष निकला। जिसका प्रभाव काफी भयंकर था और वह धरती पर मौजूद सभी देवताओं, असुरों सहित अन्य जीव-जंतुओं के लिए घातक साबित होने लगा। जिसके बाद देवताओं ने महाकाल महाप्रभु शिव की आराधना की और उनसे मदद की गुहार लगाई। देवताओं की पुकार सुनकर भोले-भंडारी प्रभु महादेव ने उस जहरीले कालकूट विष को अपने शंख में भरा और अमृत मान पी गए।
प्रभु महादेव ने विषपान करते वक्त अपने आराध्य भगवान विष्णु का ध्यान किया था। कहा जाता है भगवान विष्णु अपने सभी भक्तों के संकट क्षणभर में हर लेते है। यही वजह थी कि महादेव ने विष्णु जी का ध्यान कर विषपान कर लिया। महादेव की आराधना सफल रही और विष्णु भगवान ने उस विष के प्रभाव को प्रभु शिव के गले तक ही रोक दिया। इस चमत्कार के बाद महादेव का कंठ नीला पड़ गया और उन्हें संसार ने एक नया नाम दिया नीलकंठ। आज भी प्रभु नीलकंठ के अनगिनत भक्त है, जो उनकी भक्ति में हर वक्त लीन रहते है। नीलकंठ महादेव की पूजा के लिए ‘महाशिवरात्रि’ का पर्व पुराणों में सबसे बड़ा दिन माना गया है। इस दिन की शुरुआत कैसे और कब हुई, इस बारे में काफी लोग आज भी अनजान है। चलिए जानते है महाशिवरात्रि के इतिहास के बारे में…
ब्रह्मा-विष्णु विवाद से हुई महाशिवरात्रि की शुरुआत
पुराणों में एक कथा है जिसका सीधा सन्दर्भ महाशिवरात्रि से माना गया है। उस कथा के मुताबिक एक बार भगवान विष्णु और ब्रह्माजी के बीच ‘कौन श्रेष्ठ है?’ इस बात को लेकर विवाद छिड़ गया। ब्रह्माजी का कहना था कि वह सृष्टि के रचियता है इसलिए सर्वश्रेष्ठ है और विष्णु जी का कहना था कि वह सृष्टि के पालनहार है इसलिए वह ही सर्वश्रेठ है। ऐसी स्तिथि का निदान करने के उद्देश्य से वहां प्रभु महादेव का एक लिंग प्रकट हुआ। दोनों देवताओं के बीच इस बात पर सहमति बनी कि, जो इस लिंग के छोर का पहले पता लगा लेगा उसे ही सर्वश्रेष्ठ माना जाएगा। कुछ समय बाद विष्णु जी लिंग का छोर ढूढ़ने में सफल नहीं हुए और वापस लौट आये। थोड़ी देर बाद ही ब्रह्माजी भी असफलता के साथ वापस लौटे लेकिन उन्होंने विष्णु जी से झूठ बोला कि, उन्होंने छोर ढूढ़ लिया है। साथ ही उन्होंने ‘केतकी के फूल’ को इस बात का साक्षी बनाकर पेश किया। ब्रह्माजी के झूठ को सुनकर महादेव प्रकट हुए और उनका एक सर काट दिया। इसके अलावा ब्रह्माजी जी के झूठ में साथ देने के लिए केतकी के फूल को भी श्राप मिला और शिव पूजा में हमेशा के लिए उसके इस्तेमाल को निशेध कर दिया गया।
कहा जाता है जब महादेव ने यह श्राप दिया था उस वक्त फाल्गुन महीने का 14वां दिन था। यह पहला अवसर था जब प्रभु महादेव ने खुद को एक लिंग के रूप में प्रकट किया। इसी कारण इस पर्व को हिंदू पुराणों में विशेष महत्त्व दिया गया और फाल्गुन कृष्ण चतुर्दशी को ‘महाशिवरात्रि’ के नाम से मनाया जाने लगा। इस दिन महादेव के भक्त उनका आशीर्वाद पाने के लिए कड़ा उपवास भी करते है, जो अन्य व्रतों से काफी अलग होता है। आमतौर पर उपवास में फलों का सेवन किया जाता है। लेकिन महाशिवरात्रि के व्रत का अपना विशेष महत्त्व माना गया है। इस व्रत में बिना नमक का भोजन खाने का प्रावधान है लेकिन कुछ लोग सेंधा नमक का सेवन कर लेते है। इस व्रत में आपको कुछ ऐसे भोजन का सेवन करना चाहिए जिसमें नमक भी ना हो और वह आपके शरीर में ताजगी का भी संचार कर सके। इसलिए आपके लिए महाशिवरात्रि के व्रत में खाने योग्य चीजों के विकल्प नीचे दिए गए है…
महाशिवरात्रि व्रत के लिए उपयुक्त आहार
1. टेस्टी भेल: शिवरात्रि के व्रत में आप मूंगफली-आलू मिक्स व धनिया गार्निश कर उसे तवे पर सेक सकते है। इसके बाद इसे फ्राई कर लेवें और आनंद के साथ खावे। इससे आपका व्रत भी नहीं टूटेगा और शरीर में ताजगी भी बनी रहेगी। इस आहार को अपनाने से आपको विटामिन सी मिलेगा।
2. मखाने और मूंगफली: भोले भंडारी के व्रत में आप मखाने और मूंगफली को घी में फ्राई कर खाएं। यह काफी हल्का आहार होगा और आपका मन भी तृप्त हो जाएगा। आप चाहे तो इसमें सेंधा नमक भी डाल सकते है जो थोड़ा स्वाद बढ़ा देगा। इस आहार में विटामिन सी की मात्रा भी काफी अच्छी होती है।
3. ठंडाई: दूध से बनी ठंडाई शिवरात्रि के व्रत में आपके लिए ताजगी का काम करेगी। कैल्शियम और प्रोटीन से भरपूर ठंडाई में केसर, पिस्ता, काजू, बादाम, सौंफ, इलायची और शक्कर की उपयुक्त मात्रा होती है। इन सब तत्वों से मिलकर बनी ठंडाई आपके शुगर लेवल को भी ठीक करती है।
4. सब्जियों के कटलेट: आप सबसे पहले कई तरह की सब्जियां घिस ले। इसके बाद उसमें गाजर, आलू, हरी और शिमला मिर्च को मिला ले। अंत में इस पूरे मिश्रण को सिंघाड़े के आटे के साथ मिलाकर गोला बनाकर तेल में फ्राई करें और खाएं। फाइबर से भरपूर यह आहार शिवरात्रि पर बेस्ट होगा।
5. कुट्टू के आटे के चीले: शिवरात्रि के व्रत में कुट्टू के आटे के चीले भी बेस्ट ऑप्शन हो सकते है। इसके लिए आप कुट्टू के आटे में खीरा घिस कर भरे। बाद में हल्का तेल मिलाकर फ्राई करने वाले पैन में चीले को सेंक लेवें। यह स्वादिष्ट आहार भी बनेगा और आपके व्रत का निरादर भी नहीं होगा।
शास्त्रों के मुताबिक संसार में कई तरह के व्रत किये जाते है। लेकिन शिवरात्रि का व्रत सभी में सबसे अधिक महान माना गया है। पूरी भक्ति और श्रद्धा के साथ इस व्रत का पालन करने से प्रभु महादेव की कृपा होती है। महाशिवरात्रि के व्रत को परम मंगलमय और दिव्यतापूर्ण माना गया है। कहा जाता है कि जो भी व्यक्ति इस व्रत का विधि-विधान से पालन करता है उसे मरणोपरांत मोक्ष की प्राप्ति होती है। इसके लिए आपको व्रत नियम और पूजन विधि का ज्ञान होना जरुरी है। चलिए जानते है शिवरात्रि पर महादेव के पूजन के विधि और व्रत के कड़े नियमों के बारे में…